UN शांति मिशन के तहत इजराइल-लेबनान बॉर्डर पर 600 भारतीय सैनिक तैनात हैं (फोटो- रॉयटर्स)


इजरायल-लेबनान के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. वहीं, भारत इजराइल-लेबनान बॉर्डर पर 120 किलोमीटर की ब्लू लाइन पर तैनात अपने 600 सैनिकों पर कड़ी नज़र रख रहा है, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के तहत तैनात किया गया है. हालांकि भारत एकतरफा तरीके से सैनिकों को वापस नहीं बुला सकता, लेकिन बढ़ते तनाव के बीच उनके साथ संवाद बनाए रखना फिलहाल सर्वोच्च प्राथमिकता है.

सैनिकों की सुरक्षा के महत्व पर जोर देते हुए सेंटर फॉर जॉइंट वारफेयर स्टडीज (CENJOWS) के महानिदेशक मेजर जनरल अशोक कुमार (रिटायर्ड) ने कहा कि हमारे सैनिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है. भारत उस क्षेत्र से अपने सैनिकों की वापसी पर एकतरफा फैसला नहीं ले सकता, लेकिन वह उनकी भलाई सुनिश्चित करने के लिए अपने तैनात बलों के साथ लगातार संपर्क में रहता है.

उन्होंने कहा कि इजराइल के साथ संबंध महत्वपूर्ण हैं, लेकिन युद्ध में ईरान की भागीदारी होती है तो ये इस मुद्दे को जटिल बना सकती है. “पश्चिम एशिया में भारत के रणनीतिक हित बहुआयामी हैं. हालांकि इजरायल के साथ हमारे संबंध, खास तौर पर रक्षा के मामले में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन संघर्ष में ईरान की किसी भी तरह की भागीदारी भारत के लिए मामले को जटिल बना सकती है. ईरान हमारी कनेक्टिविटी परियोजनाओं, खास तौर पर चाबहार बंदरगाह के लिए महत्वपूर्ण .

मेजर जनरल कुमार ने मिडिल ईस्ट में बढ़ते तनाव के बीच भारत की अर्थव्यवस्था, खास तौर पर तेल आपूर्ति और व्यापार पर संभावित प्रभाव के बारे में चिंताओं जाहिर की. उन्होंने कहा कि अगर संघर्ष तेल आपूर्ति को बाधित करता है, तो यह सीधे तौर पर हमारी आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर सकता है. इसके अलावा, अगर स्थिति बिगड़ती है तो खाड़ी में काम करने वाले 9 मिलियन भारतीयों की भलाई खतरे में पड़ सकती है. 

हालांकि उन्होंने आश्वस्त किया कि व्यापार में विविधता लाने के भारत के प्रयासों, खास तौर पर लेबनान से मिलने वाले उर्वरकों ने इन जोखिमों को कम किया है. उन्होंने कहा कि भारत ने घरेलू उत्पादन बढ़ाया है और रूस जैसे अन्य सोर्स से आयात बढ़ाया है, जिससे संभावित व्यवधान कम हुए हैं. लेकिन उन्होंने आगाह किया कि जंग से उत्पन्न होने वाली किसी भी चुनौती से निपटने के लिए भारत को कूटनीतिक रूप से जुड़े रहना चाहिए. 

मेजर जनरल कुमार ने कहा कि भारत ने अमेरिका और रूस जैसी प्रमुख शक्तियों के बीच संबंधों को सफलतापूर्वक बैलेंस किया है. पश्चिम एशिया में हमारे रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए यहां भी इसी तरह का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होगा. 

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