तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसादम का मामला तूल पकड़ता जा रहा है


आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के लड्डू प्रसादम का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. CM चंद्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया है कि जिस घी से लड्डू का प्रसाद तैयार किया जाता था, उसमें मछली के तेल और जानवरों की चर्बी की मिलावट पाई गई है. इस घटना के बाद देशभर के लोग घी के घोटाले पर बात कर रहे हैं और पूछ रहे हैं कि क्या तिरुपति मंदिर के प्रसाद में बहुत बड़ा पाप हुआ है? एक ज़माने में जब लोग लंबी उम्र तक जीते थे, तब समाज कहता था कि इन लोगों ने ज़रूर अपनी जवानी में अच्छा दूध-दही और घी खाया होगा. इसी तरह जब कोई व्यक्ति कुछ शुभ बोलता है तो लोग कहते हैं कि आपके मुंह में घी-शक्कर. सफल व्यक्ति के लिए कहते हैं कि उसकी पांचों उंगलियां घी में हैं और अपने भारत के लिए कहते हैं कि यहां दूध और घी की नदियां बहती हैं.

लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमारे देश में नकली दूध और नकली घी की नदियां बह रही हैं और ये नकली घी इस नदी में तैरते हुए अब तिरुपति मन्दिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है. विडम्बना ये है कि भारत में औसतन हर 20 दिनों में कहीं ना कहीं नकली और मिलावटी घी के खिलाफ कार्रवाई होती है और ये घी आपके घरों की रसोई में भी अपनी जड़ें जमाकर बैठ चुका है, लेकिन जैसे ही ये घी मन्दिर के प्रसाद में पहुंचा तो ये भारत की सबसे बड़ी खबर बन गया है और अब घर-घर में इस घी वाले घोटाले की चर्चा हो रही है. ऐसे में सवाल ये भी है कि क्या अगर किसी मिठाई की दुकान पर रखे लड्डुओं की लैब में जांच होगी तो क्या उन लड्डुओं के घी में भी यही जानवरों की चर्बी और फैट हो सकता है?

अब खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण करेगा जांच

इस मुद्दे पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से फोन पर बात की है और ये भी कहा है कि मोदी सरकार इस पूरे मामले की जांच भारत के खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण से कराएगी.

रिपोर्ट में सामने आईं तीन बातें 

अब FSSAI की टीम उस रिपोर्ट की जांच करेगी, जिसमें ये दावा है कि तिरुपति मन्दिर में प्रसाद के लिए बनने वाले लड्डुओं के घी में सूअर की चर्बी, बीफ का FAT और मछली का तेल इस्तेमाल होता था और इस रिपोर्ट को लेकर भी तीन बड़ी बातें पता चली हैं.

पहली बात- ये रिपोर्ट उन लड्डुओं और घी के सैंपल्स पर आधारित है, जो इसी साल जुलाई के पहले हफ्ते में जांच के लिए भेजे गए थे. दूसरी बात- इन सैंपल्स की जांच गुजरात की एक सरकारी लैब में हुई है, जिसका नाम है सेंटर फॉर एनालिसिस एंड लर्निंग इन लाइवस्टोक्स एंड फूड. ये लैब गुजरात के आणंद ज़िले में है और इसका संचालन भारत सरकार के एक बोर्ड द्वारा किया जाता है, जिसका नाम नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड है.
तीसरी बात- जिन सैंपल्स को जांच के लिए भेजा गया, वो सैंपल मंदिर समिति ने खुद इस सरकारी लैब को भेजे थे और ये रिपोर्ट 17 जुलाई को ही सार्वजनिक हो गई थी. 

रिपोर्ट जुलाई में आई तो अब क्यों उठाया मुद्दा?

अब बहुत सारे लोग पूछ रहे हैं कि जब ये रिपोर्ट 17 जुलाई को आ गई थी तो मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने ये मुद्दा दो महीने बाद सितम्बर में क्यों उठाया? तो सच्चाई ये है कि आन्ध्र प्रदेश की सरकार ने ये मुद्दा जुलाई के महीने में ही उठाया था और इसकी जांच के बाद खराब क्वॉलिटी का घी भेजने वाली एक डेयरी कम्पनी को ब्लैकलिस्ट भी कर दिया था, लेकिन ये मामला अभी इसलिए उछला क्योंकि मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इस पर हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बयान दिया था.

तिरुपति के लड्डू को मिला GI टैग

आन्ध्र प्रदेश का तिरुपति बालाजी मन्दिर भगवान विष्णु के अवतार भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है, जहां दर्शन के लिए आने वाले हिन्दू श्रद्धालुओं को पिछले 300 वर्षों से ‘लड्डू’ का विशेष प्रसाद दिया जा रहा है और इस लड्डू को वर्ष 2014 में GI टैग भी मिल चुका है, जिसका मतलब ये है कि तिरुपति तिरुमाला के नाम से ये लड्डू सिर्फ आन्ध्र प्रदेश के तिरुपति मन्दिर में ही मिल सकता है और बाकी कोई इस लड्डू की बिक्री नहीं कर सकता.

कितने ग्राम का लड्डू, कितनी है इसकी कीमत?

इस एक लड्डू का वज़न 175 ग्राम होता है और हर बैच के पहले लड्डू का भोग भगवान वेंकटेश्वर को लगाया जाता है और बाद में इन लड्डुओं की प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं के बीच बिक्री होती है. इनमें पहला लड्डू प्रत्येक श्रद्धालु को प्रसाद के रूप में मुफ्त में दिया जाता है, जबकि अगर कोई व्यक्ति एक से ज्यादा लड्डू खरीदना चाहता है तो उसे प्रत्येक लड्डू पर 50 रुपये के हिसाब से मन्दिर समिति को भुगतान करना होता है और तिरुपति मन्दिर को इन लड्डुओं की बिक्री से हर साल 500 से 600 करोड़ रुपये की आय होती है, ये सारा विवाद यहीं से शुरू होता है.

लड्डुओं के लिए हर साल 54 लाख KG घी का इस्तेमाल 

इस मंदिर में हर रोज़ आने वाले एक लाख हिन्दू श्रद्धालुओं के लिए लगभग 3 लाख लड्डू बनाए जाते हैं, जिनके लिए 15 टन यानी 15 हज़ार किलोग्राम घी का इस्तेमाल होता है. अगर हम पूरे साल की बात करें तो पूरे साल में मन्दिर समिति इन लड्डुओं को बनाने के लिए 54 लाख किलोग्राम घी का इस्तेमाल करती है और ये घी अलग-अलग कम्पनियों और गोशालाओं से आता है. मंदिर समिति के पूर्व सदस्यों का कहना है कि उन्होंने गुजरात और राजस्थान से विशेष नस्ल की साढ़े 500 गाय खरीदी हैं, जिन्हें तिरुपति मन्दिर की गोशालाओं में रखा जाता है और इन गायों के घी से मन्दिर के लड्डू बनाए जाते हैं, लेकिन लड्डुओं की मांग बहुत ज्यादा होती है और प्रतिदिन इन्हें बनाने के लिए 15 हजार किलोग्राम घी की आवश्यकता होती है. इसलिए ये घी बाहर की कुछ कंपनियों से भी खरीदा जाता है. प्रसाद के लड्डुओं में मिलावट की कहानी भी यहीं से शुरू होती है.

नकली घी तिरुपति मन्दिर में कैसे पहुंचा?

लड्डुओं में सूअर की चर्बी, बीफ का FAT और मछली का तेल तभी आ सकता है, जब इन लड्डुओं को बनाने में असली की बजाय नकली घी का इस्तेमाल हुआ हो. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और उसकी तमाम एजेंसियां और यहां तक कि अदालतें भी अपने कई फैसलों में मान चुकी हैं कि नकली और मिलावटी घी में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल होता है, अगर इस मामले में यही चर्बी और FAT मिला है तो शत प्रतिशत ये पूरा मामला नकली घी के इस्तेमाल का है, क्योंकि नकली घी बनता ही जानवरों की चर्बी और उनके FAT से है. यहां आपके मन में ये सवाल होगा कि ये नकली घी तिरुपति मन्दिर में पहुंचा कैसे? और आखिर इसके लिए पिछली सरकार कैसे दोषी हो सकती है? तो इस सवाल का जवाब ये है कि इन लड्डुओं को बनाने के लिए जिन डेयरी कम्पनियों से घी खरीदा जाता है, उन्हें ऑनलाइन टेंडर उसी समिति से मिलता है, जिसका गठन आन्ध्र प्रदेश की सरकार द्वारा किया जाता है, ये ऑनलाइन टेंडर हर 6 महीने में निकाले जाते हैं, जिनके तहत घी की आपूर्ति करने वाली कम्पनियों को ठेका दिया जाता है और इस पूरी प्रक्रिया का संचालन मन्दिर की एक समिति द्वारा किया जाता है, जिसका नाम है. तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम.

जगन रेड्डी ने अपने मौसा को दिया बड़ा जिम्मा

इस समिति का गठन राज्य सरकार करती है और जब वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में जगन मोहन रेड्डी आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने इस समिति का गठन करते हुए इसके अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी, Y.V. Subba Reddy को सौंपी थी, जो अभी राज्यसभा के सदस्य भी हैं. जगन मोहन रेड्डी की मां और सुब्बा रेड्डी की पत्नी दोनों सगी बहनें हैं और सुब्बा रेड्डी रिश्ते में जगन मोहन रेड्डी के मौसा हैं और शायद यही कारण है कि वर्ष 2019 में जब जगन मोहन रेड्डी आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने तिरुपति मन्दिर के बोर्ड का अध्यक्ष अपने सगे मौसा सुब्बा रेड्डी को बनाया था और अध्यक्ष होने के नाते सुब्बा रेड्डी और बाकी सदस्य ही ये तय कर रहे थे कि लड्डुओं को बनाने के लिए घी किन डेयरी कम्पनियों से खरीदा जाएगा. नियमों के हिसाब से इस मन्दिर बोर्ड में सुब्बा रेड्डी का कार्यकाल 2 वर्षों का होना चाहिए था,  लेकिन जगन मोहन रेड्डी ने वर्ष 2021 में उन्हें फिर से अध्यक्ष नियुक्त कर दिया और उनकी सरकार में सुब्बा रेड्डी और मन्दिर बोर्ड के बाकी सदस्य ही घी खरीदने वाली डेयरी कम्पनियों को ऑनलाइन टेंडर देते रहे.

नंदिनी ब्रांड का घी खरीदना बंद कर दूसरी कंपनी को दिया टेंडर

TDP का आरोप है कि पिछले साल मन्दिर समिति ने कर्नाटक मिल्क फेडरेशन से नंदिनी ब्रांड के घी को खरीदना बंद कर दिया था और इसका टेंडर दूसरी डेयरी कम्पनियों को दे दिया था, जिनमें तमिलनाडु की एक डेयरी कम्पनी का नाम भी शामिल है, जिसके घी को वापस लौटाकर मौजूदा सरकार ने उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया है और ये भी बताया है कि इस डेयरी कम्पनी से पिछली सरकार सिर्फ 320 रुपये प्रति किलोग्राम में घी खरीद रही थी और ये घी खराब क्वॉलिटी का था. तिरुपति मन्दिर के एक पूर्व पुजारी ने भी दावा किया है कि उन्होंने प्रसाद में खराब क्वॉलिटी के घी के इस्तेमाल को लेकर कई बार शिकायतें की थी, लेकिन मन्दिर समिति के पूर्व अध्यक्षों ने कभी इन शिकायतों को गम्भीरता से नहीं लिया.

देश में इतना है घी और दूध का उत्पाद

भारत में हर साल लगभग 23 हज़ार करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है, जिनमें से घी बनाने के लिए सिर्फ 10 पर्सेंट दूध ही उपलब्ध होता है और ये 10 पर्सेंट होता है 2300 करोड़ लीटर दूध और एक किलो घी बनाने के लिए 30 लीटर दूध की आवश्कता होती है, जिसका मतलब ये हुआ कि इतने दूध से पूरे साल में 76 करोड़ किलो घी ही बन सकता है, जबकि हमारे देश की आबादी 145 करोड़ है और अगर हम ये मान लें कि इन 145 करोड़ लोगों में आधे लोग भी घी खाते हैं तो उन्हें सालभर के लिए एक किलो ही घी मिलेगा, जबकि हर व्यक्ति सालभर में अधिकतम 4 से 5 किलो घी खाने में इस्तेमाल करता है और इससे आप ये समझ सकते हैं कि हमारे देश में जितना घी चाहिए, उतना दूध है ही नहीं और इसी के कारण जानवरों की चर्बी से मिलावटी घी बनाया जाता है. और ये घी आपके घर से लेकर, मिठाई की दुकानों और अब शायद तिरुपति मन्दिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है और हो सकता है कि बाकी मन्दिरों में भी ऐसे मिलावटी घी का इस्तेमाल हो रहा हो.

नकली घी बनाने के लिए होता है इन चीजों का इस्तेमाल 

यहां आपके मन में ये सवाल भी होगा कि तिरुपति मन्दिर के लड्डुओं में BEEF TALLOW, LARD और मछली के तेल ही क्यों मिला? तो इसकी वजह ये हो सकती है कि नकली घी बनता ही इन चीजों से हैं, इसमें लार्ड उस सफेद पदार्थ को कहते हैं, जो सूअर की चर्बी को पिघलाने पर निकलता है. जब मिलावटी घी बनाया जाता है तो उसे दानेदार बनाने के लिए और उसमें घी जैसी सफेद परत और चिकनाहट पैदा करने के लिए जानवरों की चर्बी पिघलाकर डाली जाती है और इससे असली और मिलावटी घी के बीच का जो अंतर होता है, वो खत्म हो जाता है. एक किलोग्राम घी को तैयार करने के लिए उसमें जानवरों की 500 ग्राम चर्बी, 300 ग्राम रिफाइंड, PALM OIL और फिश ऑइल, 200 ग्राम असली देसी घी और 100 ग्राम केमिकल मिलाया जाता है. ये वही केमिकल होते है, जिससे जानवरों की चर्बी वाले घी से देसी घी की सुगंध आने लगती है और जब आप बाज़ार में घी खरीदने के लिए जाते हैं तो आप यही देखते हैं कि उसकी सुगंध कैसी है, उसका रंग कैसा है, उसमें कितनी चिकनाहट है और वो घी कितना दानेदार है. FSSAI और केन्द्रीय उपभोक्ता मंत्रालय ने अपनी अलग अलग रिपोर्ट्स में माना है कि शुद्ध देसी घी में जानवरों की चर्बी और उनका फैट नहीं होता, जबकि मिलावटी घी इसी चर्बी और फैट से बनता है. एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल जितना मिलावटी और नकली घी बनता है, उसमें से 5 पर्सेंट को भी पुलिस और सरकारें पकड़ नहीं पातीं और ये सारा नकली घी आसानी से लोगों तक पहुंच जाता है और अब तो ये शायद मन्दिर के प्रसाद में भी पहुंच गया है.
 

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