राहुल गांधी ने शुभंकर सरकार को उतना ही काम करने की जिम्मेदारी दिलाई है, जितना ममता बनर्जी को मंजूर हो.


शुभंकर सरकार पश्चिम बंगाल कांग्रेस के नये अध्यक्ष बन गये हैं. शुभंकर सरकार ने सीनियर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी की जगह ली है – और इसके साथ ही ममता बनर्जी के खिलाफ बंगाल में एक बुलंद आवाज को खामोश कर दिया गया है. 

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दो महत्वपूर्ण नियुक्तियां की है. एक बंगाल में, और एक कश्मीर से. बंगाल में ममता बनर्जी के मनमाफिक, और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव को देखते हुए. अब तक यूथ कांग्रेस की कमान संभाल रहे श्रीनिवास बीवी की जगह अब उदयभानु चिब को जिम्मेदारी दे दी गई है. श्रीनिवास बीवी की ज्यादा चर्चा कोविड काल में उनके काम को लेकर होती रही है, लेकिन कई बार तो वो बीजेपी और प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ राहुल गांधी से भी ज्यादा आक्रामक देखे गये हैं, और लाठियां भी खूब खाई हैं. यहां तक कि पटना जाकर भी. 

कश्मीर से आने वाले कांग्रेस नेता उदयभानु चिब आगे क्या करेंगे, देखना होगा, अभी तो उनकी भूमिका विधानसभा चुनावों तक ही सीमित मानी जानी चाहिये – लेकिन बंगाल कांग्रेस के नये अध्यक्ष शुभंकर सरकार खास तौर पर ध्यान खींचते हैं.

महत्वपूर्ण बात ये है कि शुभंकर सरकार को अधीर रंजन चौधरी की जगह लाया गया है, जो कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच दीवार बने हुए थे – ऐसे में सवाल ये भी उठता है कि जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके अधीर रंजन को अब कैसे काबू किया जा सकेगा. 

शुभंकर जितने फायदेमंद हैं, उतने ही नुकसानदेह भी! 

लोकसभा में भी राहुल गांधी से पहले कांग्रेस का नेतृत्व कर चुके अधीर रंजन, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा कांटा थे – लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ये भूल गया कि वो महज एक कांटा नहीं था, वो अकेला शख्स कांग्रेस की हिफाजत के लिए कांटों के बाड़ जैसा रहा है. 

ये ठीक है कि अभिषेक बनर्जी कहते हैं कि अधीर रंजन चौधरी के कट्टर विरोध के चलते पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और टीएमसी के बीच चुनावी गठबंधन नहीं हो सका. ये भी ठीक है कि ममता बनर्जी के कांग्रेस से उखड़े उखड़े रहने के पीछे अधीर रंजन बड़ी वजह थे – लेकिन ये भी समझ लेना जरूरी है कि बंगाल में कांग्रेस बचाये रखने में अधीर रंजन से बड़ा योगदान भी किसी का नहीं है.

2011 में काम निकल जाने के बाद से तो ममता बनर्जी कांग्रेस की जड़ें खोदने में ही जुटी थीं, जैसे महाराष्ट्र में शरद पवार करते रहे हैं. महाराष्ट्र में राहुल गांधी ने नाना पटोले को मोर्चे पर तैनात रखा है, लेकिन बंगाल में अधीर रंजन को तो किनारे ही लगा दिया गया. 

लोकसभा स्पीकर चुनाव के वक्त ममता बनर्जी नाराज हो गई थीं, तो मनाने के लिए राहुल गांधी को फोन करना पड़ा था, जबकि ममता बनर्जी ने कभी राहुल गांधी की परवाह नहीं की. तब भी, जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हुआ करते थे. ममता बनर्जी 10, जनपथ जाकर सोनिया गांधी से मिलतीं. अगर राहुल गांधी वहां मिल गये तो ठीक, वरना न तो इंतजार करती थीं, न ही कभी अलग से मुलाकात होने के लिए प्रयास करती नजर आई हैं. 

राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भले मिल गई हो, महुआ मोइत्रा ने भले ही संसद में राहुल गांधी को अपना नेता तक बता डाला हो, लेकिन जब तक ममता बनर्जी सार्वजनिक तौर पर ऐसी मान्यता और मंजूरी नहीं देतीं, और सोनिया गांधी की तरह सम्मान नहीं देतीं, बाकी चीजें कोई खास मायने नहीं रखतीं.

शुभंकर सरकार की बातों से भी लगता है कि वो ममता बनर्जी के प्रति नरम रुख रखने वाले हैं. शुभंकर की एक खासियत ये भी है कि उनको लेकर बंगाल कांग्रेस में सर्वसम्मति तो बताई ही जा रही है, अधीर रंजन को भी उनको लेकर कोई खास आपत्ति नहीं है. 

ममता बनर्जी के हिसाब से देखें तो बंगाल में राज्यपाल सीवी आनंद बोस के पहुंच जाने के बाद चीजें काफी बदली बदली नजर आने लगी थीं. शुरू में ममता बनर्जी के प्रति उनका बड़ा ही नरम रुख देखा जाता रहा, लेकिन अब तो तेवर के मामले वो अपने पूर्ववर्ती जगदीप धनखड़ (फिलहाल देश के उपराष्ट्रपति) को ही टक्कर देने लगे हैं – और जिस शैली की राजनीति ममता बनर्जी करती हैं, क्या मालूम शुभंकर सरकार को भी रुख बदलने को मजबूर होना पड़े.

अब अधीर रंजन को कौन कंट्रोल करेगा?

‘अधीर रंजन जी ने जो भी किया वो सही था… वो बंगाल में पार्टी को मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे. वो हमारे कार्यकर्ताओं के खिलाफ होने वाली ज्यादतियों का विरोध कर रहे थे,’ अधीर रंजन के पक्ष में शुभंकर सरकार की बातों को राजनीतिक बयान की तरह ही लिया जा सकता है.

लेकिन जिस तरह सभी के लिए दरवाजे खुले होने की बात वो कर रहे हैं, उसका फायदा तो तभी होने वाला है जब ममता बनर्जी भी ताली बजाने को तैयार हों – और अब तक का ट्रैक रिकॉर्ड तो यही बता रहा है कि गुंजाइश बहुत कम ही है. 

शुभंकर सरकार के लिए ममता बनर्जी के साथ निभाने से कहीं  ज्यादा चुनौतीपूर्ण अधीर रंजन के साथ काम करना. जब तक अधीर रंजन कांग्रेस में हैं, वो तो बदलने से रहे – और मुश्किल तो तब खड़ी होगी जब वो राहुल गांधी के साथ भी ममता बनर्जी जैसा व्यहार करने लगें.

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