म्यांमार में छिड़े गृह युद्ध से भारत में खतरा


म्यांमार में जारी भीषण गृह युद्ध और बांग्लादेश में राजनीतिक उथल-पुथल के बीच भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर गंभीर खतरे उत्पन्न हो गए हैं. इस नीति को भारत के पूर्वोत्तर और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, लेकिन अब यह म्यांमार और बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक परिदृश्यों के कारण बाधाओं का सामना कर रही है.

म्यांमार में हालात बिगड़ते हुए
म्यांमार में सत्तारूढ़ सैन्य जुंटा (तातमादॉ) और विभिन्न जातीय विद्रोही समूहों के बीच चल रहे संघर्ष ने देश को गृह युद्ध की स्थिति में धकेल दिया है. रेखाइन (पूर्व में अराकान) प्रांत, जहां भारत की महत्वाकांक्षी कलादान मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट (केएमटी) परियोजना का एक बड़ा हिस्सा स्थित है, पर अब बर्मी सेना का नियंत्रण कमजोर पड़ता दिख रहा है.

रेखाइन प्रांत का एक बड़ा हिस्सा अब अलगाववादी अराकान सेना के नियंत्रण में है, जो म्यांमार-बांग्लादेश सीमा पर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की कोशिश कर रही है. अराकान सेना ने सिटवे (पूर्व में अक्कियाब) पर कब्जा करने के लिए भारी तैनाती शुरू कर दी है, जो रेखाइन प्रांत का प्रशासनिक मुख्यालय है. अगर यह शहर विद्रोहियों के हाथ में चला जाता है, तो यह म्यांमार के लिए एक बड़ी रणनीतिक हार होगी और भारत के लिए भी गंभीर संकट उत्पन्न कर सकता है.

अराकान सेना की बढ़ती ताकत
अराकान सेना की ताकत सिर्फ अपनी सफलताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वह अन्य विद्रोही समूहों के साथ गठबंधन कर अपनी स्थिति को और मजबूत कर रही है. जुलाई के अंत में, कोकांग विद्रोही समूह एमएनडीएए ने बर्मी सेना को हराकर उत्तरी शान राज्य के लशियो शहर पर कब्जा कर लिया, जो चीन की सीमा पर स्थित है. यह बर्मी सेना के लिए एक बड़ी हार थी, क्योंकि लशियो में उनकी पूर्वोत्तर कमान का मुख्यालय था.

इसके अलावा, काचिन स्वतंत्रता सेना (केआईए) ने भी बर्मी सेना के खिलाफ एक महत्वपूर्ण जीत हासिल की, जब उन्होंने काचिन राज्य में बर्मी लाइट इन्फैंट्री बटालियन (एलआईबी) 437 के मुख्यालय पर कब्जा कर लिया. इन जीतों से प्रेरित होकर, अराकान सेना अब सिटवे पर कब्जा करने की योजना बना रही है, ताकि म्यांमार से स्वतंत्रता की औपचारिक घोषणा कर सके.

भारत के लिए चुनौतियां
भारत के लिए स्थिति और भी जटिल है. भारत ने रेखाइन प्रांत में कलादान मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट परियोजना के तहत सिटवे बंदरगाह के आधुनिकीकरण में $484 मिलियन का निवेश किया है. यह परियोजना भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को म्यांमार और उसके आगे दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. हालांकि, म्यांमार में बिगड़ती स्थिति के कारण इस परियोजना को पूरा करने में कई बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं.

अराकान सेना ने पहले भी इस परियोजना में बाधा डाली थी, खासकर तब जब भारतीय सेना ने मिजोरम की सीमा पर म्यांमार में उनके ठिकानों पर ‘ऑपरेशन सनशाइन’ चलाया था. हालांकि, पिछले साल तातमादॉ के खिलाफ अपने अभियान के दौरान अराकान सेना ने संकेत दिया था कि वह इन कनेक्टिविटी परियोजनाओं का विरोध नहीं करेगी, क्योंकि ये रेखाइन राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी हो सकती हैं. लेकिन, अगर अराकान सेना म्यांमार से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा करती है और भारत उसे मान्यता नहीं देता, तो यह परियोजना पूरी तरह से संकट में आ सकती है.

चीन की भूमिका
चीन भी रेखाइन प्रांत में गहरे समुद्री बंदरगाह और तेल-गैस पाइपलाइन जैसी बड़ी परियोजनाओं में निवेश कर चुका है. हालांकि, अराकान सेना चीन को नाराज करने से बचने के लिए क्योकफ्यु बंदरगाह पर हमला करने से बच सकती है, लेकिन सिटवे पर कब्जा करने की उसकी योजना चीन के लिए भी सिरदर्द बन सकती है.

भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर प्रभाव
भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा कोलकाता-बैंकॉक हाईवे भी है, जिसे त्रिपक्षीय हाईवे के नाम से जाना जाता है. इस परियोजना का उद्देश्य भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ाना है, लेकिन म्यांमार में बिगड़ते हालात के कारण इसे पूरा करना और चालू करना अब मुश्किल होता जा रहा है.

इसके अलावा, बांग्लादेश में शेख हसीना की बर्खास्तगी के बाद, वहां की विपक्षी पार्टियां भारत के साथ किए गए समझौतों की समीक्षा की मांग कर रही हैं, जिससे दिल्ली की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और भी संकट में पड़ सकती है.

म्यांमार और बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के चलते भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति पर गंभीर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. म्यांमार में गृह युद्ध और रेखाइन प्रांत में अराकान सेना के बढ़ते प्रभाव ने भारत के कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं. आने वाले महीनों में, भारत को अपनी पूर्वी नीति के तहत अपने हितों की रक्षा करने के लिए नए रणनीतिक उपाय तलाशने होंगे.



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *