हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक तीन दिन पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को पैरोल पर जेल से रिहाई मिल गई है. वह बुधवार की सुबह भारी सुरक्षा के बीच रोहतक की सुनारिया जेल से बाहर आया. हालांकि चुनाव आयोग ने कई शर्तों के आधार पर उसे 20 दिनों की पैरोल दी है. इस तरह वो न तो हरियाणा में रहेगा और न ही चुनाव प्रचार कर सकेगा. लेकिन राम रहीम के अनुयायियों में यह मैसेज तो चला ही गया है कि भाजपा राज में बाबा का पूरा ख्याल रखा जाता है. यह मैसेज कहीं वोट में न बदल जाए, इसके लिए मुख्य विपक्षी पार्टी बाबा की रिहाई पर ऐतराज जता रही थी. यानी समझा जा सकता है कि राम रहीम अभी भी हरियाणा में कितना प्रभावी है. कांग्रेस ने भारतीय चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर आपत्ति जताई थी, लेकिन उसकी आपत्ति को दरकिनार कर दिया गया. हालांकि पिछले कई चुनावों को देखा जाए तो बाबा का जादू अब काम नहीं कर रहा है. फिर भी अगर बाबा की पूछ बनी हुई है तो इसके पीछे कई कारण हैं. आइये देखते बाबा के समर्थक कैसे बदल देते हैं किसी भी चुनावों का रंग.
1- नौ जिलों की 30 से अधिक सीटों पर बाबा के चेले ऐसे करेंगे काम
अखबारों में छपे तमाम रिपोर्ट्स में यहा दावा किया जाता है कि राम रहीम का हरियाणा के 9 जिलों की करीब 30 से अधिक सीटों पर दखल है. राज्य में 50 लाख से ज्यादा लोग उसके फॉलोअर्स हैं. बाबा के फरलो पर बाहर निकलने से उसके समर्थकों में यह संदेश जाता है कि हरियाणा की बीजेपी सरकार अगर सत्ता में रहती है तो बाबा को इसी तरह बाहर आने की अनुमति मिलती रहेगी. डेरों का कम्युनिकेशन नेटवर्क बहुत व्यवस्थित होता है. ये पूरी तरह से संगठित होता है. सोशल मीडिया के जमाने में एक वॉट्सऐप मैसेज से ही काम हो जाता है. विशेषकर डेरा सच्चा सौदा में पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी होती है. डेरे में यह कमेटी तय करती है कि किसे समर्थन देना है. प्रकाश झा की बेवसीरीज आश्रम में ये बहुत बढ़िया तरीके से दिखाया गया है कि कैसे डेरों की पोलटिकल अफेयर कमेटी काम करती है. बाबा के कुछ खास चेले बाबा के सामने किसी भी राजनीतिक विषय़ से होने वाले लाभ हानि को उनके सामने रखते हैं. बाबा हर पक्ष को समझने के बाद फैसला लेता है.
2-दलित वोटर्स के बीच कितनी है बाबा की पूछ
हरियाणा विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक मारामारी दलित वोटों को लेकर है. क्योंकि जाट वोट एक तरीके से कांग्रेस के साथ हैं. पंजाबी हिंदू और पिछड़ा वोट अधिकतर बीजेपी के साथ हैं. बनिया और ब्राह्मण वोट कुछ टूटकर कांग्रेस की ओर जा सकते हैं. प्रदेश में करीब 20 प्रतिशत आबादी दलित वोटर्स की है. जाहिर है कि हर पार्टी चाहती है कि दलित वोट किसी न किसी तरीके से उसके साथ आ जाए. इनेलो ने दलित वोट के लिए बीएसपी से गठबंधन किया है तो जेजेपी ने आजाद समाज पार्टी को अपने साथ लाई है. पर बताया जा रहा है कि इस बार राज्य में बीएसपी और आजाद समाज पार्टी कुछ खास नहीं कर पा रही है. आम आदमी पार्टी का कैंपेन देखकर लगता है कि वह इन चुनावों में हथियार डाल चुकी है. हरियाणा की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप नरूला कहते हैं कि राहुल गांधी ने सैलजा और भूपेंद्र हुड्डा के हाथ तो मिलवा दिए हैं पर दिल दोनों के ही दिल अभी दूर हैं. हुड्डा समर्थकों ने सैलजा का जो अपमान पिछले दिनों किया उसका कुछ तो असर पड़ेगा ही. नरुला कहते हैं कि चुनाव से ठीक पहले राम रहीम को फरलो दिए जाने का असर तो होगा. विशेषकर कांग्रेस का कुछ तो नुकसान होगा ही. दरअसल हरियाणा के गांवों में जाटों की दबंगई अभी भी पहले ही जैसी है. SC समुदाय अभी जाटों से घुल मिल नहीं पाता है. बाबा की रिहाई से दलित समुदाय के बहुत वोट बीजेपी को स्थानांतरित हो सकते हैं.
3-जेल जाने के बाद कितना बरकरार है बाबा का जादू
इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती कि बाबा का जादू उनके जेल जाने के बाद से लगातार फीका पड़ रहा है. लेकिन जब वो जेल से बाहर थे और उन पर कोई भी मामले कोर्ट में साबित नहीं हो सके थे तब भी डेरा प्रमुख भारतीय जनता पार्टी का कितना फायदा पहुंचाते थे यह बहस का विषय है. तर्क के बजाय फैक्ट पर जाएं तो पता चलता है कि बाबा के समर्थन का कई बार कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
2014 में बीजेपी हरियाणा में पहली बार पूर्ण बहुमत से विधानसभा चुनाव जीती थी. डेरा प्रमुख राम रहीम के समर्थन के बावजूद अपने प्रभाव वाले इलाकों में बाबा भारतीय जनता पार्टी को चुनाव नहीं जितवा सके.जिस सिरसा में राम रहीम का मुख्यालय है, वहां पर बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई.हालांकि पीएम मोदी ने खुद सिरसा की एक रैली में डेरा सच्चा सौदा के कामों की तारीफ की थी.
2019 के चुनाव में भी सिरसा में बीजेपी जीत नहीं पाई. इसी तरह 2012 में कैप्टन अमरिंदर की डूबती नैय्या भी बाबा नहीं बचा पाए थे जबकि बाबा का आशीर्वाद लेने कैप्टन सपत्नीक सिरसा पहु्ंचे थे. इसी तरह डबवाली में डबवाली सीट पर डेरा सच्चा सौदा ने खुलकर इनेलो का विरोध किया था पर सफलता नहीं मिली. 2009 में अजय चौटाला भी डेरा के विरोध के बावजूद इस सीट को जीतने में कामयाब हुए.
हालांकि चुनाव जीतने और हारने का केवल एक कारण नहीं होता है. बहुत से कारक मिलकर चुनाव में किसी भी पार्टी को विजयी बनाते हैं. इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि बाबा के समर्थक उनके एक इशारे पर वोटिंग करते हैं. यह इस तरह समझ सकते हैं कि करीब 38 समर्थक बाबा के जेल जाने पर अपने सीने पर पुलिस की गोली खाकर अपनी जान तक देने में संकोच नहीं किए.