Exclusive Dont Need An India That’s Shifting From One Camp To Another. We Need Strong India, Says Danish Envoy Svane ABPP Exclusive: एक कैंप से दूसरे कैंप जाने वाला भारत नहीं, एक मजबूत भारत चाहिए, बोले- डेनमार्क के राजदूत


नई दिल्ली और कोपनहेगन के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती और विस्तार देने के मकसद से दोनों देशों के बीच कूटनीति संबंध स्थापित होने के करीब सात दशक बाद भारत और डेनमार्क ने साल 2020 में अप्रत्याशित रुप से ‘ग्रीन स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप’ की शुरुआत की थी. कोविड-19 महामारी के बाद भारत और डेनमार्क की रणनीतिक साझेदारी में एक तरफ जहां और प्रगाढ़ता आयी तो वहीं भारत में तैनात डेनमार्क के राजदूत फ्रेडी स्वेन ने कहा कि कोपनहेगन ने यूक्रेन-रूस वॉर पर नई दिल्ली के रुख का उसने समर्थन किया.

साल 2010 में डेनमार्क के राजदूत के तौर पर भारत आए फ्रेडी स्वेन करीब 14 साल की अपनी सेवा के बाद अब नई दिल्ली से फेयरवेल की तैयारी में हैं. एबीपी लाइव के साथ इंटव्यू में स्वेन ने कहा कि डेनमार्क पूरी तरह से भारत की मदद, उत्साहित करने के लिए तैयार है न कि उसे सिखाने के लिए.

30 नवंबर को रिटायर हो रहे स्वेन ने कहा- “मैं ऐसा मानता हूं कि ये समझना जरूरी है कि भारत ने क्यों रुस-यूक्रेन वॉर के संदर्भ में वो स्टैंड लिया. हमें ये भी समझना पड़ेगा कि भारत ने बड़े ही चतुराई ने न सिर्फ शब्दों में साफ कर दिया, बल्कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कह दिया कि हम युद्ध के युग में नहीं रह रहे हैं. स्वेन ने कहा कि ये बेहद कड़ा संदेश था, जो भारत की तरफ से दिया गया था. 

स्वेन ने कहा कि मध्य पूर्व में भी जब 7 अक्टूबर 2023 के हमास ने इजरायल पर हमला किया था, उसमें भी भारत ने यथासंभव अपनी अहम भूमिका निभाई.   
  
यूरोपीय देशों ने उस वक्त भारत की काफी आलोचना की थी जब फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने मॉस्को के खिलाफ कुछ नहीं बोला था. हकीकत ये है कि युद्ध के बाद जहां पश्चिमी देशों की तरफ से रुस ने पाबंदियां झेली, तो वहीं दूसरी तरफ नई दिल्ली और मॉस्को के बीच इस महीने 1000 दिन पूरा हो जाएगा, इस दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में इजाफा हुआ और भारत ने रूस से कच्चे तेल की खरीद और बढ़ा दी. 

हालांकि, अपने पश्चिमी साझेदारों के दबाव में, भारत ने रूस से संपर्क किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के इतर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा, कि “यह युद्ध का युग नहीं है” . 

पिछले 14 वर्षों से भारतीय विदेश नीति को काफी करीब से नजर रखने वाले डेनमार्क के राजदूत स्वेन का कहना है,” सामरिक स्वायत्ता के मामले में भारत का स्टैंड काफी मजबूत है और मैं ऐसा मानता हूं कि दुनिया की बेहतरी के लिए एक मजबूत भारत की आवश्यकता है… हमें ऐसे भारत की जरूरत नहीं है जो एक कैंप से दूसरे कैंप में शिफ्ट हो.”

डेनमार्क के राजदूत ने आगे कहा- “हमें ऐसे भारत की जरूरत है जो खुद अपनी सामरिक, आर्थिक और  प्रौद्योगिकी-संचालित रुचियां तय करते हैं और ऐसे भारत कर रहा है. ये पूरा क्षेत्र शक्ति का केन्द्र बन रहा है, ऐसे में ये देखना महत्वपूर्ण है कि कैसे भारत अपनी स्थिति तय करता है. मुझे ऐसा लगता है कि भारत एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है.”

डेनमार्क के राजदूत ने आगे वास्तव में हम ये देख रहे हैं कि कैसे हम भारत की मदद और उसे प्रेरित कर पाएं, अगर भारत एक पक्ष से अपनी निर्भरता को कम कर अधिक विविधतापूर्ण की दिशा में आगे बढ़ रहा है. 

उन्होंने कहा कि शायद कोविड-19 की ये एक अच्छी चीज थी कि लोगों की आंखों खुली और इस बात के वे समझ पाएं कि निर्भरता भी एक तरह का रणनीतिक खतरा है. ऐसे में जहां तक ऊर्जा पर निर्भरता कम करने की बात है तो ऐसे में हमें उसमें अपनी भूमिका निभानी होगी, जैसे हमने ग्रीन स्ट्रैटजिक पार्टनरशिप में किया था, ऐसे में ये अब आप पर निर्भर है कि आप उसका इस तरह से फायदा उठाते हैं.

उन्होंने कहा कि कई लोगों का ये मानना है कि भारतीय लोकतंत्र का सार्वभौमिक मूल्य है और उसे जहां पर युद्ध चल रहा है, एक कैंप को ज्वाइन करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है और ऐसा हो भी नहीं सकता है क्योंकि हमसभी नहीं होने देंगे. स्वेन क कहना है कि भारत अब उठकर खड़ा हो रहा है और अपने राष्ट्र हित को कुछ कठिन रास्तों और चुनौती भरे कदमों से आगे बढ़कर रक्षा कर रहा है, जैसा उसने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370  और धारा 35ए को खत्म करके किया है.

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