प्रशांत किशोर ने बुधवार को पटना के वेटनरी कॉलेज मैदान में अपनी पार्टी लॉन्च कर दी है. उन्होंने बताया कि उनकी पार्टी का नाम जन सुराज होगा. उन्होंने पार्टी के गठन के साथ-साथ जन सुराज के पहले नेता के तौर पर कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती के नाम का भी ऐलान कर दिया है और लोगों से भारती का परिचय कराया. प्रशांत किशोर ने कहा कि मनोज भारती को उनकी योग्यता और समर्पण के लिए ये जिम्मेदारी दी है.
जन सुराज के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती बिहार के मधुबनी जिले के रहने वाले हैं और दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने संयुक्त बिहार के सबसे प्रतिष्ठित सरकारी स्कूल नेतरहाट से पढ़ाई की है. (जो कि वह झारखंड के रांची में है) उन्होंने आईआईटी कानपुर इंजीनियरिंग की है. इसके बाद उन्होंने साल 1988 में यूपीएससी परीक्षा पास कर आईएफएस अधिकारी बने और भारतीय विदेश सेवा में रहते हुए मनोज ने चार देशों इंडोनेशिया, बेलारूस, यूक्रेन और तिमोर लेस्ते में भारत के राजदूत के तौर काम कर चुके हैं.
कीव से की मास्टर डिग्री
वह राजदूत बनने से पहले म्यांमार, तुर्किए, नेपाल, नीदरलैंड और ईरान में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके है. उन्होंने साल 2017 में तारास शेवचेंको नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ,कीव (यूक्रेन) से इंटरनेशनल रिलेशन (ऑनर्स) में मास्टर डिग्री हासिल की है. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं हैं.
उन्हें कई भाषाओं का भी ज्ञान है. उनके सीवी के मुताबिक, वह हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, फारसी के साथ-साथ बंगाली, रूसी, बहासा, फ्रेंच और तुर्की का भी ज्ञान हैं.
क्यों चुना भारती पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष
पीके लोगों से पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष का परिचय करते हुए कहा कि पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष मनोज भारती दलित समुदाय से आते हैं. उन्होंने उनकी योग्यता और समर्पण के लिए चुना गया है.
वहीं, पार्टी नेता के रूप में अपने पहले संबोधन में बिहार की चुनौतियों को अवसरों में बदलने पर जोर डाला. उन्होंने उत्तरी बिहार में हर साल आने वाली बाढ़ का जिक्र करते हुए कहा कि बाढ़ वाली नदियां हमें नुकसान पहुंचा रही हैं. हम नदियों को अपना दोस्त बनाने की रणनीति बना रहे हैं न कि उन्हें अपना दुश्मन. उन्होंने प्रदेश में लंबे वक्त से चले आ रहे मुद्दों पर नए दृष्टिकोण से सोचना की जरूरत पर जोर देने को कहा.
उन्होंने नेतरहाट स्कूल के पूर्व छात्र भारती ने बिहार के भविष्य के बारे में अपने दृष्टिकोण को साझा किया, जहां नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के युगों की तहत ज्ञान की भूमि के रूप में अपनी ऐतिहासिक प्रतिष्ठा हासिल करेगा. मैं जहां भी गया, बिहार मेरे साथ गया. हमारा प्रयास तब तक जारी रहेगा जब तक बिहार देश के शीर्ष दस राज्यों में शामिल नहीं हो जाता.